आनंदवन में, मन के गगन में, बदली पवन की दिशा। मधुमीत मद्धम, चलता समय है, लोरी सुनाती निशा। धूमिल ध्वनि है, अनुरागिनी है, घटती है मन की विषा। करुणा उमड़ कर, सुविधा रमण कर, बढ़ती हृदय की वृषा।
असीमित तम से, स्वयं के भ्रम से, चलती है मेरी रीशा। स्वप्नों के मद में, विषयों के जद में, खोती मेरी अभिषा। हर काल क्षय हो, जितना भी भय हो, ले जाए चंचल मृषा। संसार-मय हो, पराजय की जय हो, जीवन भरे ये मिशा।
— Curious Observer
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