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Writer's pictureCurious Observer

नंगापन

 
 
लोग कहते हैं कि इस हमाम में सभी नंगे हैं। मैं कहता हूं, कि नंगे हो के भी वो चंगे हैं। नंगा होने में भला क्या बुराई है? नंगा होना ही तो असल खुदाई है।
नंगापन खुदा की सौगात है। उसे छुपाने की चाहत इंसान की औकात है। कुदरत से करीबी नंगापन ही लाता है। पोशाक पहन कर इंसान बस अपना मन बहलाता है।
जो नंगेपन से डरते हैं, अपने आप से वे हिकारत करते हैं। खुद को ढक कर तू अपनी सच्चाई ढकता है। कपड़े बदलते बदलते ही ताउम्र थकता है।
किसी पोशाक में तुझे चैन नहीं आता है। अपनी रूह के कोने में, तुझे नंगापन ही भाता है। तू आता है तो नंगा आता है। तू जाता है तो नंगा जाता है। बीच में क्यूं तू बदन को बचाता है?
जो दूसरों को नंगा देख डरते हैं, वो अपने नियत की तौहीन करते हैं। नंगेपन को जो अपनाते हैं, वो जहां से एक कदम आगे हो जाते हैं। जब खुदा ने बनाया तेरा जिस्म, तेरी रूह को बसाने को। तूने क्यूं ढूंढी शरम, इस जिस्म को कसाने को?
क्यूं किसी को नंगा देख तेरी आंखें झुक जाती हैं? क्यूं नही उसे देख के तुझे भी नंगई आती है? रब की दी हुई ये नंगी आबरू। अपना नंगेपन को, हो इसे रूबरू।
हो नंगा, तू भी अपना खुद को। मत पहन पोशाक, छोड़ दे इस ज़िद को। पहन कर पोशाक भी, तो खुद को नही बचा पाएगा। आ नंगा हो, सब नंगों में अपनी जगह बनाएगा।
है नंगा दूसरे नंगे का सगा होता है। पोशाक पहन तू, अपनों को खोता है। उतार सब लिबाज़, खुद को आजाद कर दे। पोशाक से बनी दूरी को, पोशाक उतार कर भर दे।

— Curious Observer

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